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जाने तिलक लगाने के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक चमत्कार




हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान तिलक से होती है। मान्यता है कि तिलक लगाने से समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा होता है। हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य में “तिलक या टीका” लगाने का विधान हैं। यह तिलक कई वस्तुओ और पदार्थों से लगाया जाता हैं। इनमें हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि प्रमुख हैं, परन्तु क्या आप जानते हैं कि इस तिलक लगाने के

प्रति भावना क्या छिपी हैं?
सुषुम्ना नाडी को केंद्र बिंदु मानकर अपने-अपने संप्रदायों के अनुसार मस्तक पर तरह-तरह के लिए तिलक धारण किए जाते है। चंदन का लेप सुषुम्ना पर लगाने से अध्यात्म के लिए अनुकूल प्रक्रिया होती है। नासिका से प्रवाहित होने वाली दो नाड़ियों में से बाईं पिंगला धन और दाईं नाडी़ इडा़ ऋण होती हैं। धन विद्युत बहते समय उत्पन्न उष्णता को रोकने के लिए सुषुम्ना पर तिलक लगाना बहुत उपयोगी रहता हैं।

‘कठोपनिषद्’ में तिलक धारण विधि के संदर्भ में नाडी का वर्णन इस प्रकार किया गया है-
हदय की नाड़ियों में से सुषुम्ना नामक नाडी़ मस्तक के सामने वाले हिस्से से निकलती हैै। इस नाडी से ऊध्र्वगतीय मोक्ष मार्ग निकलता है। अन्य सभी नाड़ियां प्राणोत्क्रमण के बाद चारों दिशाओं मे फैल जाती है मगर सुषुम्ना का मार्ग ऊध्र्व दिशा की ओर ही रहता है जिस मार्ग से सुषुम्ना का ऊध्र्व भाग स्पष्ट रूप् से दिखाई दे, ऐसी गहरी रेखा प्रत्येक व्यक्ति के ललाट पर होती हैं।

जानिए हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाते हैं और तिलक लगवाते वक़्त सर पर हाथ क्यों रखते हैं ?शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।

पुराणों में वर्णन मिलता है कि संगम तट पर गंगा स्नान के बाद तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है की स्नान करने के बाद पांडो द्वारा विशेष तिलक अपने भक्तों को लगाया जाता है। माथे पर तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मिक महत्व है।

दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है।



यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है।

मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है। शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है। इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा।

इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है ।

स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव पड़ता हैं। तिलक जिस भी पदार्थ का लगाया जाता हैं उस पदार्थ की ज़रूरत अगर शरीर को होती हैं तो वह भी पूर्ण हो जाती हैं। तिलक किसी खास प्रयोजन के लिए भी लगाये जाते हैं जैसे यदि मोक्षप्राप्ती करनी हो तो तिलक अंगूठे से, शत्रु नाश करना हो तो तर्जनी से, धनप्राप्ति हेतु मध्यमा से तथा शान्ति प्राप्ति हेतु अनामिका से लगाया जाता हैं।

आमतौर से तिलक अनामिका द्वारा लगाया जाता हैं और उसमे भी केवल चंदन ही लगाया जाता हैं तिलक संग चावल लगाने से लक्ष्मी को आकर्षित करने का तथा ठंडक व सात्विकता प्रदान करने का निमित छुपा हुआ होता हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को तिलक ज़रूर लगाना चाहिए।

मान्यताओं के अनुसार सूने मस्तक को शुभ नहीं माना जाता। माथे पर चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर या भस्म का तिलक लगाया जाता है। तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक लगाने की केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि इसके कई वैज्ञानिक कारण भी हैं।

हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। तंत्र शास्त्र में पंच गंध या अस्ट गंध से बने तिलक लगाने का बड़ा ही महत्व है तंत्र शास्त्र में शरीर के तेरह भागों पर तिलक करने की बात कही गई है, लेकिन समस्त शरीर का संचालन मस्तिष्क करता है। इसलिए इस पर तिलक करने की परंपरा अधिक प्रचलित है।