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पवित्र मक्का मदीना का इतिहास Makka Madina History in Hindi Urdu



मुस्लिमों के लिए मक्का मदीना जन्नत का दरवाजा माना जाता है। हर मुस्लिम अपने जीवन में कम से कम एक बार वहां जाने की ख्वाहिश रखता है। कहा जाता है कि वहां पर भी कुछ हिंदू रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, हालांकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं होता है।

1. पवित्र मक्का मदीना का इतिहास।
2. हजयात्रा का समय।
3. क्यों वर्जित है मक्का मदीना में गैर मुस्लिमों का प्रवेश?
4. मुस्लिमों के पवित्र धार्मिक स्थल मक्का-मदीना के अंदर क्या है?
5. मक्का और मदीना में प्रवेश का वीसा

1. पवित्र मक्का मदीना का इतिहास
मक्का मदीना सऊदी अरेबिया के हज का शहर है। यह मक्का साम्राज्य के शासक की राजधानी है। समुद्र सतह से 277 मीटर (909 फीट) ऊँची जिन्नाह की घाटी पर शहर से 70 किलोमीटर अंदर स्थित है। 2012 तक तकरीबन वहाँ 2 मिलियन लोग रहते थे, बल्कि इसके तीन गुना लोग प्रतिवर्ष लोग इसे देखने आते है। ज्यादातर मुस्लिम लोग धु-अल-हिज्जाह के बारहवे लूनर महीने में हज की यात्रा पर जाते है। कहा जाता है की यह स्थान मुहम्मद का जन्मस्थान और कुरान की पहली आकाशवाणी का स्थान भी है (यहाँ मक्का से 3 किलोमीटर की दुरी पर एक विशेष गुफा भी है)। इस्लाम धर्म में मक्का को सबसे पवित्र शहर माना जाता है।

मक्का में इस्लाम धर्म के लोग इसे काबा का घर भी मानते है। मक्का पर लंबे समय तक मुहम्मद के वंशजो ने शासन किया है। जिनमे शरीफ भी शामिल है, जो स्वतंत्र रूप से शासन करते थे। मक्का का निर्माण 1925 में इब्न सौद ने किया था। आकार और आकृति को देखते हुए मक्का एक बेहतरीन और खूबसूरत ईमारत है।
काबा - प्राचीन काल से ही मक्का धर्म तथा व्यापार का केंद्र रहा है। यह एक सँकरी, बलुई तथा अनुपजाऊ घाटी में बसा है, जहाँ वर्षा कभी-कभी ही होती है। नगर का खर्च यात्रियों से प्राप्त कर द्वारा पूरा किया जाता है। यहाँ पत्थरों से निर्मित एक विशाल मस्जिद है, जिसके मध्य में ग्रेनाइट पत्थर से बना आयताकार काबा स्थित है, जो 40 फुट लंबा तथा 33 फुट चैड़ा है। इसमें कोई खिड़की नहीं है, बल्कि एक दरवाजा है। काबा के पूर्वी कोने में जमीन से लगभग पाँच फुट की ऊँचाई पर पवित्र काला पत्थर स्थित है। मुस्लिम यात्री यहाँ आकर काबा के सात चक्कर लगाते हैं उसके बाद इसे चूँमते हैं।

मक्का पैगम्बर मुहम्मद का जन्मस्थल कहा जाता है - यहाँ मुहम्मद साहब ने 570 ई. पू. में जन्म लिया था। फिर मक्कावासियों से झगड़ा हो जाने के कारण मुहम्मद साहब 622 ईसवी में मक्का छोड़कर मदीना चले गए थे। अरबी भाषा में सफर करना “हिजरत” कहलाता है यही से सवंत हिजरी की शुरुआत हुई थी, मुहम्मद साहब के पहले मक्का का व्यापार मिस्र देशों से होता था। मस्जिद के समीप ही ‘जम-जम’ का पवित्र कुआँ है।

पैगम्बर मुहम्मद साहब ने शिष्यों को अपने पापों से मुक्ति पाने के लिये जीवन में कम से कम एक बार मक्का आना आवश्यक बताया था। अतः विश्व के कोने-कोने से मुस्लिम लोग पैदल, ऊँटों, ट्रकों, तथा जहाजों से यहाँ आते हैं। पहले यहाँ पर केवल मुस्लिम धर्मावलंबियों को ही आने का अधिकार प्राप्त था। इसके कुछ मील तक चारों ओर के क्षेत्र को पवित्र माना जाता है, अतः इस क्षेत्र में कोई युद्ध नहीं हो सकता और न ही कोई पेड़-पौधा काटा जा सकता है।

2. हजयात्रा का समय -

सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम का जन्म हुआ था, इसलिए ‘मक्का’ और ‘मदीना’ जैसे पवित्र मुस्लिम तीर्थ स्थल उस देश की जागीर हैं। मक्का में पवित्र ‘काबा’ है, जिसकी प्रदक्षिणा कर हर मुस्लिम धन्य हो जाता है। यही वह स्थान है, जहाँ हजयात्रा सम्पन्न होती है। सम्पूर्ण विश्व में इस्लामी तारीख के अनुसार 10 जिलहज को विश्व के कोने-कोने से मुस्लिम इस पवित्र स्थान पर पहुँचते हैं, जिसे “ईदुल अजहा” की संज्ञा दी जाती है। भारत में इसे सामान्य भाषा में ‘बकरा ईद’ या ‘बकरीद’ कहा जाता है। हज सम्पन्न करने के पश्चात उसकी पूर्णाहुति तब होती है, जब शरीयत द्वारा मान्य पशु की कुर्बानी की जाती है।

मक्का में ‘मस्जिद-अल-हरम’ नाम से एक विख्यात मस्जिद है। इस प्राचीन मस्जिद के चारों ओर पुरातात्विक महत्व के खंभे हैं। लेकिन कुछ समय पहले सऊदी सरकार के निर्देश पर इसके कई खंभे गिरा दिए गए। इस्लामी बुद्धिजीवियों में से अनेक लोगों का यह मत है कि इसी के पास से पैगम्बर साहब ‘बुरर्क’ (पंख वाले घोड़े) पर सवार होकर ईश्वर का साक्षात् करने के लिए स्वर्ग पधारे थे। बताया जाता है कि ‘मस्जिद-अल-हरम’ 356 हजार 800 वर्ग मीटर में फैली हुई है। कहा जाता है कि इसका निर्माण हजरत इब्राहीम ने किया था। अब इस मस्जिद के पूर्वी भाग के खम्भों को धराशायी किया जा रहा है। इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यहाँ पैगम्बर हजरत मुहम्मद एवं उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण क्षणों को अरबी में अंकित किया गया है।

3. क्यों वर्जित है मक्का मदीना में गैर मुस्लिमों का प्रवेश ?

सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम का जन्म हुआ, इसलिए मक्का और मदीना जैसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थल उस देश की थाती हैं। मक्का में पवित्र काबा है, जिसकी परिक्रमा कर हर मुसलमान धन्य हो जाता है। यही वह स्थान है जहां हज यात्रा सम्पन्न होती है। मक्का पहुंचने के लिए मुख्य नगर जेद्दाह है। यह नगर एक बंदरगाह भी है और अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्ग का मुख्य केन्द्र भी। जेद्दाह से मक्का जाने वाले मार्ग पर ये निर्देश लिखे होते हैं कि यहां मुसलमानों के अतिरिक्त किसी भी और धरम का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। अधिकांश सूचनाएं अरबी भाषा में लिखी होती हैं, जिसे अन्य देशों के लोग बहुत कम जानते हैं।

अब तक इन सूचनाओं में यह भी लिखा जाता था कि ‘‘काफिरों‘‘ का प्रवेश प्रतिबंधित है। लेकिन इस बार ‘‘काफिर‘‘ शब्द के स्थान पर ‘‘नान मुस्लिम‘‘ यानी गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, लिखा था। ‘‘काफिर‘‘ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘‘इनकार करना‘‘ अथवा ‘‘छिपाना‘‘। वास्तव में ‘‘काफिर‘‘ शब्द का उपयोग नास्तिक के लिए किया जाता है। दुर्भाग्य से ‘‘काफिर‘‘ शब्द को हिन्दुओं से जोड़ दिया, जो एकदम गलत है। ईसाई, यहूदी, पारसी और बौद्ध भी उस वर्जित क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते।

इस सवाल का जवाब डॉ जाकिर नाइक की जुबानी आप के सामने रखने की कोशिश है. डॉ जाकिर नाइक ने इसलाम पर काफी रेसरीच करी है और कई किताबें भी लिखीं हैं। उनके हिसाब से - यह सच है कि कानूनी तौर पर मक्का और मदीना शरीफ के पवित्र नगरों में गैर मुस्लिमों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। निम्नलिखित तथ्यों द्वारा प्रतिबन्ध के पीछे कारणों और औचित्य का स्पष्टीकरण किया गया है।

जैसे सभी नागरिकों को कन्टोन्मेंट एरिया (सैनिक छावनी) में जाने की अनुमति नहीं होती वैसे ही हर देश में कुछ न कुछ ऐेसे क्षेत्र अवश्य होते हैं जहाँ सामान्य जनता को जाने की इजाजत नहीं होती। सैनिक छावनी में केवल वही लोग जा सकते हैं जो सेना अथवा प्रतिरक्षा विभाग से जुड़े हों। इसी प्रकार इस्लाम के दो नगर मक्का और मदीना किसी सैनिक छावनी के समान महत्वपूर्ण और पवित्र हैं, इन नगरों में प्रवेश करने का उन्हें ही अधिकार है जो इस्लाम में विश्वास रखते हो।

4. मुस्लिमों के पवित्र धार्मिक स्थल मक्का-मदीना के अंदर क्या है
मक्का की आधारशिला आज से लगभग 1400 वर्ष पूर्व मोहम्मद पैगंबर साहब के द्वारा की गई थी। यह बाहर से देखने में एक चैकोर कमरानुमा इमारत दिखाई देती है जिस पर काला लिहाफ चढ़ा हुआ है। इसके चारों तरफ मस्जिद बनी हुई है जिसमें हज के लिए आने वाले मुस्लिम जायरीन अल्लाह की इबादत करते हैं और अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं। मक्का में ही पैगंबर साहब के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं। इन्हें भक्तों के दर्शनार्थ रखा गया है। सभी वहां पर जाकर इनके दर्शन कर अपने आपको धन्य समझते हैं। इसके अतिरिक्त मक्का में एक काले रंग का पत्थर भी है, जिसे मुस्लिम चूमते हैं तथा मन्नत मांगते हैं। मक्का में ही एक कुआ भी है जिसका पानी कभी नहीं सूखता। जायरीनों के लिए चैबीसों घंटे इस कुएं से पानी निकाला जाता है। इस पानी को पवित्र मान कर इसे विभिन्न उपयोगों में लिया जाता है। आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व मक्का ऐसा दिखता था। वहां तब काले लिहाफ से ढ़का चैकोर कमरा नहीं हुआ करता था वरन खुला हुआ एक स्थान था जहां सभी अल्लाह की इबादत करते थे।

5. मक्का और मदीना में प्रवेश का वीसा
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की यात्रा करता है तो उसे सर्वप्रथम उस देश में प्रवेश करने का अनुमति पत्र प्राप्त करना पड़ता है। प्रत्येक देश के अपने कायदे कानून होते हैं जो उनकी जरूरत और व्यवस्था के अनुसार होते हैं तथा उन्हीं के अनुसार वीसा जारी किया जाता है। जब तक उस देश के कानून की सभी शर्तों को पूरा न कर दिया जाए उस देश के राजनयिक कर्मचारी वीसा जारी नहीं करते।

वीसा जारी करने के मामले में अमरीका अत्यंत कठोर देश है, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के नागरिकों को वीसा देने के बारे में, अमरीकी आवर्जन कानून की कड़ी शर्तें हैं जिन्हें अमरीका जाने के इच्छुक को पूरा करना होता है।
जैसे सिंगापुर के इमैग्रेशन फार्म पर लिखा होता है ‘‘नशे की वस्तुएँ स्मगल करने वाले को मृत्युदण्ड दिया जायेगा।’’ यदि मैं सिंगापुर जाना चाहूँ तो मुझे वहाँ के कानून का पालन करना होगा। मैं यह नहीं कह सकता कि उनके देश में मृत्युदण्ड का निर्दयतापूर्ण और क्रूर प्रावधान क्यों है। मुझे तो केवल उसी अवस्था में वहाँ जाने की अनुमति मिलेगी जब उस देश के कानून की सभी शर्तों के पालन का इकष्रार करूंगा।

मक्का और मदीना का वीसा अथवा वहाँ प्रवेश करने की बुनियादी शर्त यह है कि मुख से ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाहु, मुहम्मदुर्रसूलल्लाहि’’ (कोई ईश्वर नहीं, सिवाय अल्लाह के (और) मुहम्मद (सल्लॉ) अल्लाह के सच्चे सन्देष्टा हैं), कहकर मन से अल्लाह के एकमात्र होने का इकष्रार किया जाए और हजरत मुहम्मद (सल्लॉ) को अल्लाह का सच्चा रसूल स्वीकार किया जाए।